रविवार, 11 दिसंबर 2011

भ्रष्टाचार

जिस भ्रष्टाचार  को आज मुद्दा बना कर सभी राजनीतिक दल एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे है उनके शीर्ष नेता अभी तक कहाँ थे यह आज की नहीं दशको की  कहानी है। आज ऐसा क्या हो गया के इतना हो हल्ला मच गया आदमी जब तक पकड़ा जाये तब ईमानदार होता है। भ्रष्टाचार के लिये जहाँ आज नेताओ और नौकरशाहो को जिम्मेदार मान रहे है, मेरी समझ से उससे कही ज़्यादा हम आप और देश की कानून व्यवस्था है जिसमे अभूतपूर्व संशोधन की आवशकता है। उदाहरणार्थ: कहा जाता है के देश में प्रजातान्त्रिक व्यवस्था है अब देखिये इस प्रजातान्त्रिक  व्यवस्था का खेल - इस प्रजातंत्र में किसी विधान सभा में कुल मतों के संख्या के १५  से २० प्रतिशत वोट पाने वाले नेता के विजयी घोषित क्या जाता है जिसको ८५ से ८० प्रितिशत जनता पहले ही नकार चुकी है, फिर भी उन ८५ से ८० प्रतिशत लोग उसी नेता के बनाये नियम को मानने को बाध्य किये जाते है देश में बने वाली हर योजना सिर्फ तीन वर्गों को ध्यान में रख कर बनाई जाती है . सरकारी कर्मचारी . उद्धयोगपति . नेता उदाहरणार्थ: किसी पर्व पर राज्य एवम्  केंद्र सरकार कुछ वस्तुओ पर छुट देती है कोई बताएगा की देश की कुल आबादी का  कितने प्रितिशत लोग सरकारी कर्मचारी है यहाँ पर मैं एक प्रश्न करना चाहूँगा कि देश कि बाकी जनता क्या बेवकूफ है या घास खाती है?
                                                
चलिए रुख करते है  उद्धयोगपतियो की ओरउद्धयोग जगत में  बड़ी कम्पनियो को ही ले लें यदि किसी का 300000 का बिजली का बिल बाकि है और वह समय से भुगतान नहीं कर रहा है जिसके लिये बिजली विभाग समय समय पर संशोधन एवम्  बिल समायोजन कैम्प का आयोजन करके उक्त बिल को लगभग ५० प्रतिशत  भुगतान लेकर समायोजित कर देती है  पर क्या समय से बिल जमा करने वाले लोगो के साल भर में कोई छूट प्रदान की जाती है
                                            
चलिए रुख करते है  नेताओ की ओर- कहते है की पढ़ा लिखा समाज, देश के नेता (अगुआई करने वाले लोग) ही एक विकसित देश की नीव होते है पर आज के नेताओ ने शिछा व्यवस्था को मजाक बना कर देश को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है  शिछा मित्रों की भरती, सर्व शिछा अभियान मिड डे मील योजना देश को शीर्ष पर नहीं बल्कि गर्त में ढकेलने वाली योजनाये है। अगर ये बात किसे के गले नहीं उतर रही है तो वो सिर्फ ये बताये की किस वजह से कोई शिछा मित्र अपने बच्चे को अपने तैनाती वाले स्कूल में पढ़ना नहीं चाहता है सर्व शिछा अभियान में शिछा पाकर कितने लोग उच्च पदों पर है मिड डे मील योजना जाने कितने घोटालो को जनम दे गया। आज शिछा के नियमावली में संसोधन करने वाले, देश की जनता को शिछित करने के नाम पर यह चाहते है कि देश का वह तबका जो अशिछित एवम् गरीब  है शिछा के नाम पर अपना नाम लिखने के आलावा कुछ सीख पाए जो शीर्ष पर है उन्हीं के परिवार जनों का शीर्ष पर एकाधिकार सुरछित रहे मेरे हिसाब से भ्रष्टाचार का यह रूप उन लाखों करोड़ के घोटालो से भयानक है।
                                             
यहाँ पर सबसे बड़ा कमाल तो यह है के हमारे देश में जिन लोगो को आपराधिक वारदात के साथ पकड़ा जाता है उनपर जाँच बैठा दी  जाती है और दशको लग जाते यह साबित करने में की वास्तव में वह दोषी है कि नहीं? पता नहीं देश का कानून साबित क्या करना चाहता है? क्या यह हमारे निर्णय लेने के छमता पर सवालिया निशान नहीं है?
                                             
अगर नेताओ के बारे में कहा जाये तो सिर्फ उनके राजनीती में आने से पहले की पृष्ठभूमि पर नजर डाली जाय जवाब खुद मिल जायगा।  जैसा के कहा जाता है शीर्ष नैाकरशाहो के बिना कोई घोटाला नहीं हो सकता यहाँ पर मैं ऐसा नहीं कहूँगा की सभी नेता बेईमान और ही सभी नैाकरशाह. पर एक बार मै नेताओ को नैाकरशाहो से ज्यादा जिम्मेदार मानता हुँ क्योंकि  आज देश में कड़ी मेहनत करके IAS के नौकरी करने वाले से ज्यादा अधिकार सविधान ने नेताओ को दे रखे है जो की जनता के १५ से २० प्रितिशत वोट से साल के लिये कुर्सी पर आते हैं 
                                           
हमारे माँ बाप हमें यही सिखाते  है की हमें अपना काम पूरी लगन और निष्ठा से करना चाहिए यह कैसे सोच है लोगों कि जो ऐसा  सोचते है ....कैसे उम्मीद करते है आने वाली पीढ़ी अपना काम पूर्ण निष्ठा और सुचारू रूप से करेगी सबसे पहले वो अपने  अन्दर झाक कर देखें की वह हमें  क्या दे रहे है। 
                                           
कहा जाता है कि हिंदुस्तान असीम प्रतिभा का भंडार है पर क्या एक डिग्री धारक ही किसी कार्य के सबसे शीर्ष पृष्ठभूमि दे सकता है तो जवाब है नहीं देश में ऐसे लोगों के गिनती लाखो में है जिनके पास कोई डिग्री ना होते हुए किसी कार्य की शीर्ष पृष्ठभूमि देने की छमता  है पर कौन पूछता है उन्हें?.........पूछा तो उनको जाता है जो कुछ लेंन- देंन कर सके।
                                             
देश के शीर्ष घोटालों को लेकर जो बवाल मचा है जो जल्द हे शांत हो जायगा पर जो कुछ मैने  कहा उस पर ध्यान देने के जरुरत है अगर आज हमने इसे नकार दिया तो कल इससे मुक्ति तभी मिलेगी जब देश एक बार फिर से गुलाम होगा और ये अहसास दिलायेगा की देखो ये क्या किया तुमने ?????????????????? वह पल हमारे देश की सबसे बड़ी विडम्बना होगी और हमारे लिये हर पल मौत के बराबर।

5 टिप्‍पणियां:

  1. bilkul sahi baat likhi hai, aur ihi tarah humare youth ko jagane ki jarurat hai.. jab samucha yuva jagega, tab desh shikar par hoga.. aur antim panktiyaan vivash kar rahi hai ki main apni ek kavita ka bhaag yaha likhon..

    एक लाठी वाला पूरी दुनिया पे छा गया,
    दूजा सत्ताधारी तो चारा तक खा गया,
    चम्बल के डाकुओं को संसद भी भा गया,
    शायद जीत जायेगा लो चुनाव आ गया,
    ऐसे भ्रष्ट नेता को विजय हार कैसे दूं ?
    और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?

    तिब्बत चला गया अब कश्मीर चला जायेगा ,
    यदुवंशी रजवाड़ों में जब बाबर घुस आएगा ,
    देश का सिंघासन चंद सिक्कों में बँट जायेगा ,
    तब बोलो भारतवालो तुम पर क्या रह जायेगा ?
    आती हुई गुलामी का समाचार कैसे दूं ?
    और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?

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  2. अरे साधनाओ के नए आयाम पर चर्चा तो करो,
    जरुरत है लोगो किसी गुमनाम पर चर्चा तो करो।
    हिंद वाले हिंद में रहकर विदेशी हो गए,
    अब जरुरी है की इस इल्जाम पर चर्चा तो करो।

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  3. Aaj humarey desh ka ek verg Bhrastachar ko lekar Aandolit hai.Yaha ek verg ka arth ye hai ki samaj ka ek bahut bare verg ki sahbhagita iss Aandolan me nahi hai.Ye ek katu satya hai aur isey humey manana hoga.Aisa nahi hai ki ye verg bhrashtachar se trast nahi hai,hai aur shayad sabsey jyada,phir bhi dur hai iss Aandolan se.Humey iska Satik aur vyavharik jawab dhundhan hoga.
    Pahley to ye samjhna hoga ki Bhrashtachar koi ek din ki baat nahi hai.Bhrashtachar sirf kaali kamai ko nahi kaha ja sakta.Bhrashtachar ek samajik burai hai.Jaise Dahej pratha,Sati pratha,Bal vivah,Larkiyo ki bhrun hatya jaisi bahut si samjaik buraiyo ki tarah ye bhi ek samajik burai hai.Ye utna hi purana hai jitna veshywriti hai.
    Bhrastachar ek aisa mudda hai jisey kisi khas dal,verg,samuh ya vyakti se jore kar nahi dekha jasakta.Hume ye manana hoga ki Bhrashtachar sirf kanoon ka mamla nahi hai.Kanoon to humarey yaha sabhi samajik buraiyo ke liye hai to kya wo burai samaj se khatam ho gayee,nahi.Hume kanoon se jyada samajik jagriti ki jarurat hai.Sirf kanoon bana deney se Bhrashtachar samapt nahi hoga.
    Samajik jagriti ka rasta kathin aur lumba jarur hai lekin prabhawkari hoga.Kanoon jarur baney lekin issey koi prabhwkari result nahi milega.
    Jab tuk Bimari ki sahi pahchan nahi hoga tub tuk bimari ka sahi ilaj bhi nahi hoga.
    kya hum iskey liye ready hai?

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  4. इस तरह् तारीकिओ से हल निकाले जाएगे,
    सिर्फ अन्धो के घर मे दीप बाले जाएगे.
    जिसको ज़ो भी चाहिए मिल जाएगा उसे,
    हाथ लकिन उससे पहले काट डाले जाएगे.
    रंगते तो लूट ली फूलों की उजेली धूप ने,
    गंध को हवा के झोके चुरा ले जाएगे.
    रोटियाँ सुखी दे आप हमे शर्मिंदा ना हो,
    इतने भूखे है की पत्थर भी पचा ले जाएगे.

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